Thursday 11 April 2013

श्री पंच द्रविड़ औदिच्य ब्राह्मण समाज का इतिहास

जन्मना जायते शुद्र:
संस्कारात भवेत् द्विज: । 
वेद-पठात भवेत् विप्र: 
                           ब्रह्म जानातीति ब्राह्मण: ॥ - श्रीमद भागवतम 

श्रीमद भागवत पूराण के इस श्लोक द्वारा यह समझाया जाता हे की जन्म से मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज    ( दूसरा जन्म ), वेद  के पठन - पाठन ( पढना व् पढ़ाना ) से विप्र और जो ब्रह्म को जानता हे वो ब्राह्मण कहलाता है । परन्तु  आज के मनुष्य, जन्म से अपने आप को ब्राह्मण समजने लगे हे ।  न वेदो का अभ्यास न पठन-पाठन । वास्तव में मनुष्य ब्राह्मण का स्वभाव ही भूल चुके है । 

शमोदमस्तप : शौचम क्षांतिरार्जवमेव च । 
ज्ञानम विज्ञानमास्तिक्यम ब्रह्मकर्म स्वभावजम ॥ 

चित पर नियंत्रण, इन्द्रियों पर नियंत्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता, तथा ज्ञान विज्ञान में विश्सवास । वस्तुत: ब्राह्मण को क्रिया से बताया गया  है । ब्रह्म का ज्ञान जरुरी  है। केवल ब्राह्मण के वहा पैदा होने से ब्राह्मण नहीं होता  । ब्राह्मण के लिए उनके निहत कर्त्तव्य होते है । 

अध्यापनम अध्ययनम यज्ञं यज्ञानाम तथा । 
दानम प्रतिग्रहम चैव ब्रह्मनानामकल्पयात ॥ 

शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान लेना तथा दान देना ब्राह्मण के छ: कर्त्तव्य है । 

इस्लाम ने जब अपना आतंक इस राष्ट्र पर फहलाया तब उन्होने सबसे पहले हमारे वेदों, उपनिषदों और गुरुकुलो को ध्वस्त करना आरम्भ किया ताकि हम अपना अस्तित्व ही खो दे । फिर आये अंग्रेज जिन्होंने हमे अपनी संस्कृति को ही मजाक बनाने को मजबूर कर दिया । आजकल हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दिया जाता है यह इसी का परिणाम है । यदि कोई अपनी मात्रु भाषा का इस्तेमाल करे तो उन्हें रुडीवादी की उपाधी दे दी जाती है । पुरे समाज को आपस में भिड्वा दिया । मनुष्य अपने आपको श्रेष्ठ समजने लग गया है और अपने आप को एक समाज तक सिमित कर चुके  है जबकि हम पूरी दुनिया को "वासुदेव कुटुम्बकम" के नाम से जानते थे । 

इस लेख से हम अपने समाज के इतिहास को खोजने का प्रयत्न कर रहे है जो तितर बितर भीखरा पड़ा है । क्या है हमारा इतिहास ? कहा से आये ? कहा रहते थे ? ऐसे कई सवाल मन में उमड़ पड़ते  है। 

ऋषि कश्यप 

कहते हे की मनुष्य का इतिहास ऋषि कश्यप से शुरू होता  है। ऋषि कश्यप एक वैदिक ऋषि थे । इनकी गणना सप्तर्षी गणों में कि जाती थी । हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए । कश्यप एक गोत्र का भी नाम है । यह एक बहुत व्यापक गोत्र है । जिसका गोत्र नहीं मिलता उसके लिए कश्यप गोत्र की कल्पना कर ली जाती है, क्योकि एक परम्परा अनुसार सभी जीवधारियो की उत्पत्ति कश्यप ऋषि से ही हुई।

प्राचीन समय की बात हे जब एक विस्तृत घाटी के स्थान पर कभी मनोरम झील थी । जिसके तट पर देवताओं का वास था । एक बार इस झील में ही एक असुर कही से आकर बस गया और वह देवताओ को सताने लगा । त्रस्त देवताओ ने ऋषि कश्यप से प्राथना की कि वह असुर का अंत व विनाश करे । देवताओ के आग्रह पर ऋषि कश्यप ने उस झील को अपने तप के बल से रिक्त कर दिया । इसके साथ ही उस असुर का अंत हो गया और उस स्थान पर घाटी बन गई । ऋषि कश्यप द्वारा असुर को मारने के कारन ही घाटी को "कश्यप मार" कहा जाने लगा । यही नाम समयांतर में "कश्मीर" हो गया । निलमत पुराण में भी ऐसी ही एक कथा का उल्लेख है । 

ऋषि परशुराम विष्णु के अवतार माने जाते है । ऋषि परशुराम अत्यंत शक्तिशाली थे जो हैहेय क्षत्रिय को २१ बार हरा दिया था । जीते हुए राज्य को उन्होंने ब्राह्मणों को सौंप दि । इस तरह ब्राह्मण, राजा बन राज्य करने लगे । 

ब्राह्मण जाती को दो संप्रदाय में बांटा गया है  । 
१) पंच गौढ़ ब्राह्मण ( मूलत: विन्धीय पर्वत के उत्तर क्षेत्र ) व
२) पंच द्रविड़ ब्राह्मण ( विन्धीय पर्वत के दक्षिण क्षेत्र ) । 

कलहन श्लोक जो ११ वे शताब्दी मे रचा गया उसमें इसका उल्लेख दिया गया है । 
सारस्वता: कान्यकुब्जा गौड़ा उत्कल मैथिला : । 
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः ||
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे ॥ 

 सारस्वत (पंजाब) , कान्यकुब्ज ( बंगाल,नेपाल ), गौड़ ( राजस्थान, हरयाना ), उत्कल (ओड़िशा )          मैथिला ( उ.प्र, बिहार ) इन पांच  राज्यो के ब्राह्मण वासियों को पंच गौड़ ब्राह्मण कहा गया है  । 

कर्नाटक, आंध्र , तमिलनाडु (द्रविड़) , महाराष्ट्र और गुजरात के ब्राह्मणों को पञ्च द्रविड़ कहा गया है । 

चूंकि हम औदिच्य ब्राह्मण के इतिहास की चर्चा कर रहे है दुसरे ब्राह्मण जातियों पर हम विस्तार से नहीं जायेंगे । 
पंच  द्रविड़ ब्राह्मण के बारे में हम समझ सकते है पर औदिच्य ब्राह्मण के नाम से हम कैसे संबोधित होने  लगे ? 
औदिच्य का संस्कृत में अर्थ हे "उत्तरीय" और इसलिए औदिच्य ब्राह्मण, उत्तर भारत मुल्त: कश्मीर से आए हुए कहे जाते है।  

औदिच्य ब्राह्मण कश्मीर से गुजरात मूलराज सोलंकी जो अनिलपुर पाठान के राजा थे सन ९५५ और ९६६ के बीच समाज के विस्तार हेतु उनके न्यौते पर  आये । औदिच्य ब्राह्मण के दो भाग हुए औदिच्य सहस्त्र और औदिच्य टोलक । औदिच्य सहस्त्र हज़ारो की संख्या में और औदिच्य टोलक सेंकडो की संख्या में थे । औदिच्य सहस्त्र और टोलक  में मतभेद भी थे। सहस्त्र समूह को सिद्धराज जयसिंह ने बड़ी तादाद में जमीने दान में दी परन्तु टोलक समूह वांछित रहे। कुछ समूह राजस्थान के दक्षिण क्षेत्र और अरवल्ली पर्वत क्षेत्र के निकट अपना बसेरा बनाया । यह समूह मारवाड़ी को अपनी भाषा से संभोधन करने लगे । जो औदिच्य सहस्त्र समूह को जमीने दी गई  वे सौराष्ट्र और उत्तरीय गुजरात में अपना बसेरा जमाया। सिध्दपुर पाटन ,गुजरात में उनके समाज से सम्भोधित एक स्मारक सन ९५० में बनाया गया  । 

एक टोलक  समूह राजस्थान मेवाड़ के राजसमन्द डिस्ट्रिक्ट से २५ कि.मी दुरी पर अमेट गाव में अपना डेरा जमाया । अमेट गाव का असली नाम अम्बापुर था । अमेट गाव से कालांतर सभी लोग बिखरते गये । पर इतिहास और मूल स्थान को कभी भूले नहीं भुलाया जा सकता है । इस तरह हमारे समाज का नाम              "श्री पंच  द्रविड़ औदिच्य ब्राह्मण समाज"  के नाम से सम्भोदित होने लगा । पर इतिहास न मालूम होने के कारण कुछ समाज लोग अपने समाज को श्री पंच द्रविड़ आमेट ब्राह्मण समाज व् तरह तरह के नाम से अपने समाज को  सम्भोधन करने लगे । नीचे उदाहरण  के तौर पर कुछ चित्र दिए गए है । 

 समाज संपर्क पुस्तिका 
सत्र २००३ - ०४ में  संकलित समाज संपर्क पुस्तिका  
सत्र २००४-०५ में संकलित समाज संपर्क पुस्तिका 
न्यात प्याऊ पर अंकित "श्री पंच द्रविड़ आमेटा ब्राह्मण समाज (२००४-०५ )
हमारे समाज के लोगो ने समयांतर के रहते समाज का नाम अपने अपने हिसाब से बदलते गए । आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व समाज के मारवाड़ पंचायती द्वारा मारवाड़ में अकाल पड़ने के कारण हर समाज बंधू को दान पेटी भी दी गयी, गाय और पक्षिओ के लिए अनाज हेतु । दान पेटी का चित्र भी आपको दिया जा रहा है, जिसमे लिखा गया है "श्री औदिच्य पंच द्रविड़ दान पेटी" ।




बहतर  यही होगा यदि हम अपने असतित्व और इतिहास को समझे और उसे वैसे ही अपनाये ताकि हमारा इतिहास एक पौराणिक इतिहास बने जो युगों युगों तक चलता रहे । ऐसा तभी संभव है जब हम अपने समाज को उसकी असली पहचान दे ।

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